धमतरी. ग्राम पंचायत गंगरेल और ग्राम मरादेव में शासकीय भूमि को लेकर दो विभागों के बीच मचे खींचतान से अब आम लोग परेशान होने लगे हैं। निर्माण कार्यों को लेकर कभी सिचाई विभाग आपत्ति कर रहा है तो कभी वन विभाग उसे अपनी भूमि बता कर सीधे कार्यवाही कर रहा है। दोनों विभाग के इस खींचतान के चलते गंगरेल और मरादेव के लोग अब दहशत में आ गए हैं। दरअसल पूरा मामला वन विभाग और सिंचाई विभाग के बीच शासकीय जमीन पर हक को लेकर लड़ाई का है। हालांकि हक की लड़ाई अभी से नहीं बल्कि पिछले कई सालों से छिड़ी हुई है लेकिन पहले कभी यह मामला इतने चर्चा में नहीं रहा है। हाल में यह चर्चा का प्रमुख कारण बन चुका है। जब से गंगरेल में वाहन पार्किंग संचालन को लेकर विवाद शुरू हुआ तभी से इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि आखिर यह जमीन किसकी है और जमीन पर निर्माण कार्यों की सहमति या कार्रवाई करने का अधिकार किसको है। बताया जा रहा है कि जल संसाधन विभाग प्रबंध संभाग क्रमांक 1 कोड नंबर 38 रुद्री के द्वारा गंगरेल बांध के पास वाहन पार्किंग संचालन के लिए निविदा आमंत्रित किया गया था, जिसके बाद निर्धारित तिथि में निविदा कर्ताओं को अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय गंगरेल में बोली के लिए आमंत्रित किया गया। इस बोली में आठ निविदाकर्ता शामिल हुए, जिसमें सबसे अधिक बोली लगाकर मरादेव निवासी महेश सविता ने पार्किंग का संचालन प्राप्त किया था, पार्किंग शुरू हुए कुछ दिन ही बीते थे कि वन विभाग ने इसे अपनी जमीन बताकर जिले की प्रभारी कलेक्टर महोदय के कार्यकाल में वाहन पार्किंग का टेंडर निरस्त करा दिया। टेंडर निरस्त होने के बाद वन विभाग ने वन प्रबंधन समिति के माध्यम से खुद ही पार्किंग शुल्क वसूली शुरू कर दिया। इस पर ठेकेदार का कहना है कि जब जल संसाधन विभाग द्वारा बनाए गए वाहन पार्किंग का संचालन लगभग 4 सालों से अलग अलग ठेकेदार कर रहे थे तब वन विभाग द्वारा इस पर आपत्ति दर्ज कर क्यों कोई कार्यवाही नहीं की गई। वहीं जब जल संसाधन विभाग द्वारा निविदा जारी किया गया तब भी विभाग के अधिकारी क्यों शांत बैठे रहे। अब ऐसा कौन सा दबाव आया कि वन विभाग इसे अपनी जमीन बताकर टेंडर निरस्त कराने और खुद ही पार्किंग का संचालन करने में जुट गया। ठेकेदार का कहना है कि वह इस मामले को लेकर न्यायालय की शरण में जाएंगे।

 *मरादेव में रोड उखाड़े जाने से बवाल*

 गंगरेल वाहन पार्किंग के बाद ग्राम मरादेव में वन विभाग की दखलअंदाजी और दो किसानों के ऊपर कार्रवाई से बवाल मच गया है। आपको बता दें कि सोमवार को वन विभाग का अमला मरादेव पहुंचा था, जेसीबी के साथ पहुंचे विभागीय अमले ने यहां रिसॉर्ट की ओर जाने वाले आम रास्तों को यह बताकर उखाड़ दिया कि इस रास्ते का निर्माण वन भूमि और वन अधिकार पत्र प्राप्त किसानों की भूमि पर हुआ है। सड़क उखाड़े जाने के बाद रिसॉर्ट संचालक को भारी-भरकम आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि तहसील कार्यालय से किसानों को आने जाने के लिए रास्ता स्वीकृत किया गया है, वही जिस जगह से सड़क को उखाड़ा गया है उस जगह के लिए संसाधन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ है। ऐसे में वन विभाग द्वारा सड़क उखाड़ा जाना अनुचित है। इस मामले में जल संसाधन विभाग का कहना है कि मध्यप्रदेश शासन काल में लगभग पांच दशक पहले वर्ष 1972-73 में जल संसाधन विभाग को आबंटित किया गया था, जो कि वर्तमान में जल संसाधन विभाग के ही अधीन है। वन विभाग द्वारा उक्त भूमि पर हस्तक्षेप या कोई कार्यवाई किया जाना शासन के नियमों के विपरीत है।

 *वन विभाग ने अपने ही पट्टे को किया था निरस्त*

 बताया जा रहा है कि ग्राम पंचायत गंगरेल में प्रस्ताव पारित होने के बाद वन विभाग द्वारा ग्रामसभा गंगरेल को वन भूमि कक्ष क्रमांक 190 व  191 का सामुदायिक वन अधिकार पत्र प्रदान किया गया था। अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट की आपत्ति के बाद जिला प्रशासन, वन विभाग और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में जिला कार्यालय में बैठक बुलाई गई। जहां तत्कालीन डीएफओ सातोविशा समाजदार द्वारा दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद यह कहकर अपने ही विभाग द्वारा आवंटित सामुदायिक वन अधिकार पत्र को निरस्त कर दिया गया कि उक्त भूमि जल संसाधन विभाग के अधीन है, जिसे वन विभाग को वापस हस्तांतरित नहीं किया गया है, इसलिए उक्त भूमि में वन अधिकार पत्र जारी करने का अधिकार वन विभाग के पास नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि वन विभाग उक्त भूमि को जल संसाधन विभाग के ही अधीन बताकर जारी पट्टा को निरस्त कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अब उसे अपना बताकर कार्रवाई कर रहा है। इस संबंध में कलेक्टर एवं डीएफओ से चर्चा करने का प्रयास किया गया लेकिन संपर्क नहीं हो सका।
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